दुःख अपने सुख बेगाने
दुःख अपने सुख बेगाने
हैं
दुःख अपने
और सुख बेगाने....,
कब कहाँ ठहरते ये किसी के पास !
इनसे,
बनाए चलो सदा ही दूरी.......,
ये ना बनें कभी सगे, ना हुए किसी के ख़ास !!1!!
जैसे
कर्म अपने
पाएं फल वैसे......,
हैं दुःख-सुख हमारे ही कर्मों के परिणाम !
इनसे,
कभी ना यहाँ कोई बच पाए......,
पड़ें भोगने जन्म-जन्मों तक इनके दुष्परिणाम!!2!!
हैं
सुख दुःख
हमारे विशिष्ट अतिथि.....,
आएं, कुछ पल ठहरें और फिर चले जाएं !
सदैव,
बनाए रखें चलें जीवन में अपने समत्वं भाव.....,
और बन दृष्टा मात्र, सुख-दुःख देखते जाएं !!3!!
दुःख
इंसान का
हमेशा से ही.......,
होता आया सबसे बड़ा गुरु,शिक्षक, मार्गदर्शक !
सुख,
आए तो यहाँ कभी फूले ना समाएं.....,
और सदैव बनें रहें सरल विरल विनम्र नेक !!4!!