कितना अच्छा होता..
कितना अच्छा होता..
कितना अच्छा होता...
अपनेपन का
रंग होता
न छल, द्वेष, न ईर्ष्या का
भ्रम होता
तो कितना अच्छा होता....
किरदार
औपचारिकता का छोटा होता--
संस्कारों की पगड़ी
नतमस्तक होता
तो कितना अच्छा होता....
अब कहां फुरसत लोगों को बधाइयां देने की
प्रतिस्पर्धा की घड़ी है
कोई गुलाल अपनेपन का होता
तो कितना अच्छा होता...