चांदनी
चांदनी
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याद आ गयी
तुम घर के पास
जब आयी
उसी मुस्कान की
सरसराहट से
दुपहरी में गुजरता
कोई अकेला
रास्ता
गहन धुंध के पार
चमकते चांद को
तुम पहचान पायी
तुम्हारी हंसी
बलखाती नदी की
धार सी
दरवाजे पर तुम्हें
देखने
जब चांदनी आयी
उसी सन्नाटे में
कभी रात के
अंतिम पहर में
महकती हवा के
तुम संग आयी।