जन्मदिवस एक सुख का पडाव
जन्मदिवस एक सुख का पडाव
जीवन जैसे एक डगर
चलती धूप और छांव
जनम दिवस भी होता
जिसमें केवल एक पड़ाव
पड़ाव पूछता ठहरे-ठहरे
क्या खोया क्या पाया
गया झाँकने मन में जब
सबकुछ एक सा पाया
पाया माँ की यादें मन में
और देखा बचपन बैठा
बिछड़े अपनों का दुःख
उसके कोने लेटा लेटा
देखी उसमें बाबूजी की
छवि एक सजल है
उनसे पाई शिक्षाओं का
मन में एक महल है
थोड़ा ख़ुशियों में वो ऐंठा
बतियाता मन सुख से
थोड़ा आज नाच लेने दे
कहता मन चुपके से
कहता है मन देख ये रिश्ते
तूने जो बनवाए
एक बार जो अंदर आए
रहे यहीं समाए
कभी ख़ुशी मुड़ दूर हुई
दुःख भी बीता झुक कर
जीवन यूँ ही चलता बंधु
तीव्र कभी रुक-रुक कर
जीवन का आयाम एक है
आज जन्मदिन बनकर
बधाई बंधे संवाद मिले शुभ
जैसे माला में डलकर
धन्यवाद है आप सभी का
गीत नया गाते गाते
आभार आपके लाड़-प्यार का
सब रहें सदा मुसकाते।