मां
मां
माँ बेटी से पूछ रही है !
आज नहीं क्या सोना है ?
रात घनेरी बीत गयी है -
जल्द सवेरा होना है।
कभी खड़े आँगन में हो कर,
उसे झुलाया ------ बाहों में !
बिटिया कहाँ नींद खोई है ?
नींद न तेरी -------- राहों में।
तुझे सुलाने के चक्कर में ,
नींद मुझे भी आ ही गयी !
नींद खुली तो तुझको पाया-
मेरे करबट ----- समा गयी।
माँ को क्यों लगता है ऐसा,
चलो सुला दें -- तब सोएँ !
अरे ! उन्हें भी जग लेने दो-
हँसें और या ------ वो रोएँ।
क्यों न सोचती है माँ ऐसा,
हम भी रोए थे --- जी भर !
रो कर भी आराम मिलेगा -
कौन बताए माँ को गुरु।
लेकिन ममता कहाँ मानती,
मेरी निधि रोए तो क्यों ?
कभी न रोने का माँ पर है-
शिशु का मानो कर्जा ज्यों।
कोई बात नहीं है मानो,
माँ रोए या ना-------- रोए !
लेकिन कुदरत यह कहती है-
शिशु जब तक शिशु ना रोए।
कयी बार, -----देखा है यारो,
शिशु के चुप्प कराने को !
माँ ने बहुत डाँट खाई है ---
क्या समझायें जमाने को !!
कल को इस बेटी को भी तो
अच्छी सी बेटी---- बन ना !
और अगारी भी पढ़ लिखकर-
दुनियां की परचम बन ना।
रोना हँसना एक------ बराबर,
दोनों बहुत ----------जरूरी हैं !
माँ भी सोए शिशु भी सोए -
दोनों ---------पहल जरूरी हैं।