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Dr. Akansha Rupa chachra

Abstract Inspirational

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Dr. Akansha Rupa chachra

Abstract Inspirational

मां

मां

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माँ बेटी से पूछ रही है !

 आज नहीं क्या सोना है ?

  रात घनेरी बीत गयी है - 

  जल्द सवेरा होना है। 


कभी खड़े आँगन में हो कर,

उसे झुलाया ------ बाहों में !

बिटिया कहाँ नींद खोई है ?

नींद न तेरी -------- राहों में।


तुझे सुलाने के चक्कर में ,

नींद मुझे भी आ ही गयी !

नींद खुली तो तुझको पाया-

मेरे करबट ----- समा गयी।


माँ को क्यों लगता है ऐसा,

चलो सुला दें -- तब सोएँ !

 अरे ! उन्हें भी जग लेने दो-

हँसें और या ------ वो रोएँ।


क्यों न सोचती है माँ ऐसा,

हम भी रोए थे --- जी भर !

रो कर भी आराम मिलेगा -

कौन बताए माँ को गुरु।


लेकिन ममता कहाँ मानती,

  मेरी निधि रोए तो क्यों ?

 कभी न रोने का माँ पर है-

शिशु का मानो कर्जा ज्यों।


कोई बात नहीं है  मानो,

माँ रोए या ना-------- रोए !

लेकिन कुदरत यह कहती है-

शिशु जब तक शिशु ना रोए।


कयी बार, -----देखा है यारो,

शिशु के चुप्प कराने को !

माँ ने बहुत डाँट खाई है ---

क्या समझायें जमाने को !!


कल को इस बेटी को भी तो 

अच्छी सी बेटी---- बन ना !

और अगारी भी पढ़ लिखकर-

दुनियां की परचम बन ना।


रोना हँसना एक------ बराबर, 

दोनों बहुत ----------जरूरी हैं !

माँ भी सोए शिशु भी सोए -

दोनों ---------पहल जरूरी हैं।


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