गरीब
गरीब
जिंदगी का पता पूछ रही थी
फिर कहीं अपना वक्त ढूंढ रही थी
मैं सवालों में ही उलझ गई
और मेरा अश्क जवाब लिए खड़ा था।
नजरअंदाज करते हैं जब करीबी अपने
एक गरीब से भी ज्यादा
गरीब लगते हैं मेरे सपने
ढह गई अनमोल रिश्ते रूपी धरोहर
बिना प्रेम के जर्जर हो गया
मुझ गरीब का मकान।
कभी-कभी लगता है मैं गरीब हूं या वो ?
जो दिन-रात चिंता करता है
पेट भरने के लिए
धूप में मेहनत करता है
दो निवाले के लिए
मैं पूरी थाली सजाकर
अकेला तन्हा शान समझता हूं
सिर्फ छप्पन भोग खाने के लिए।
तूफान बरसात में ढह गई
उस गरीब की झोपड़ी
फिर तिनका तिनका ले जुट गया
अपना मकान बनाने के लिए
और मैं महल बना कर भी
पूरा जीवन तरसता रह गया उसमें
अपनों को बसाने के लिए।
गरीब हर मंदिर हर दरगाह पहुंच जाता है
छोटी-छोटी खुशियों में खुश हो जाता है
और मैं सिर्फ सोचता रह गया
भौतिक सुख सुविधाओं के साथ
तीर्थ मां-बाप को कराने के लिए
गरीब मैं था कि वो ?
मेहनत से अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया
काबिल बनाया और
सौंप दिया उसके हाथों
जिन्होंने अपनी शान समझी
और कीमत मांगी मेरी बेटी के
कमरे को सजाने के लिए।