मेरा वजूद
मेरा वजूद
सोचती हूं ऐसा वजूद से
अनोखा रिश्ता है मेरा
आँकलन कितना भी कर लूं
मां अंत में चेहरा दिखता तेरा।
आज उम्र के उस पड़ाव में हूं
जिस में आकर चाह कर भी
मैं रुक ना सकी
तेरे सिवा दर्द मेरा।
कोई आंख पढ़ ना सकी
जीवन रूपी समंदर में
हर कोई मजे से डूब रहा
अपने वजूद को
अनंत गहराइयों में ढूंढ रहा।
तूने ही तो स्वाभिमान से
जीना सिखाया
अपने वजूद को
पाना सीखाया।
तो क्यों किसी के
सहारे जीऊं
लाचारी बेबसी का
घूंट पीऊं।
अब मौन क्यो रहूं
अपने अधिकारों के लिए लड़ूं
क्योंकि आज भी अगर
अपना वजूद ढूंढने निकल जाऊं
तो खो जाऊंगी
दुनिया की भीड़ में और
ताउम्र जूझती रह जाऊंगी
अपने ही वजूद की तलाश में।