इंतजार
इंतजार
आजकल धरती का मन उदास रहता है
सुना है, सावन किसी और के पास रहता है।
इसी जलन की आग में मई, जून और जुलाई गुजर जाएंगे,
शायद इस बार भी बावरे बादल देर से आएंगे।
पतझड़ का मौसम नहीं है, फिर भी सूना-सूना रहता है,
कब होगा मिलन गुलाब पूछता रहता है।
क्या धरती और सावन के रिश्ते सुधर पाएंगे,
दोनों कौन से महीने में करीब आएंगे?
यह विरह की ज्वाला कभी तो शांत होगी,
एक बार फिर से दोनों में बात होगी।
हमें भी इंतजार है—
कब सावन पिया आएंगे,
अपनी रूठी प्रियतमा धरती को मनाएंगे।
इनके प्रेम की वर्षा में हम भी
सम्मिलित हो जाएंगे।
ठंडी-ठंडी हवाओं में हम भी
अपनों के संग खो जाएंगे।
मगर यह इंतजार कब खत्म होगा?
कब सावन का सितम कम होगा?
यही सोचते हुए दिन गुजर रहे हैं,
धरती के साथ-साथ हम भी बिफर रहे हैं।