इंसानों ने फर्क बनाया है
इंसानों ने फर्क बनाया है
ईश्वर ने बनाया सभी को एक सा,
इंसानों ने आपस में फर्क बनाया है।
सभी में तो बहता है खून एक सा,
फिर भेद किस बात का बनाया है ?
धर्म जाति के नाम पर इंसानों ने,
आपसी प्यार को भी भुलाया है।
खुद को औरों से ऊंचा जानकर,
आपसी झगड़ों को क्यों बढ़ाया है ?
चार दिन का यहां ठिकाना है सब का,
इस सच्चाई को सबने भुलाया है।
कुछ भी चलना नही है साथ अपने,
ये खुद को क्यों नहीं समझाया है ?
झूठे शान और मान की खातिर,
आपसी रिश्तों को भी भुलाया है।
झूठे धन और दौलत की खातिर,
खून के रिश्तों को भी क्यों रुलाया है ?