इन्सान
इन्सान
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आजकल मैं सोचता हूँ
सच में कैसा इन्सान हूँ मैं
इन्सानियत से भी ज़्यादा
आज पैसों पर कुर्बान हूँ मैं !
लाख गलती करके भी
कैसे नादान हूँ मैं
करोड़ों का है घर
फिर भी पड़ोसी के लिए
अन्जान हूँ मैं
बड़े - बड़े पद पर बैठा हूँ
फिर भी घरवालों के लिए
उलझन हूँ मैं
बस मोबाइल पर ही
एक्टिव हूँ
परिवार के लिए
सिर्फ थकान हूँ मैं
बाहर तो शराब की भी
बारिश करता हूँ
खुद के घर के लिए तो
रेगिस्तान हूँ मैं
पैसों के लिए
ठुकराया था घर
आज तो आँसुओं का
बरतन हूँ मैं
आज तो रईसों में रईस हूँ
पर प्यार के लिए
तड़पती धड़कन हूँ मैं
ना घर,
ना घरवाले
बस कागज़ के नोटों से
रौशन हूँ मैं...!