इमारत और घर
इमारत और घर


तुम बहुत जहीन हो.....
अपने काम मे फ़ोकस रहते हो
अपने ऑफिस में न जाने कितने एम्प्लॉयीज को कंट्रोल करते हो...
तुम एक बहुत अच्छे बॉस हो.......
तुम घर के एक फ़र्द ....
हाँ, घर के तुम सरबरा तो हो ही
लेकिन घर तो घर है
कोई ऑफिस तो नही.....
जहाँ तुम्हारे कायदे कानून चलेंगे
और किसी रूल बुक से काम होगा
यह सिर्फ़ ईंट गारे से बना मकान नही है
जीते जागते लोगों से भरा घर है
जिसमे उनकी बातें ही नही बल्कि खामोशी भी बोलती है......
सी ई ओ साहब!!! आजकल तुम्हे यह क्या होता जा रहा है?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उन किस्सों में खुश रहने लगे हो
मशीनों के बीच रहते हुए तुम भी मशीन में बदलते जा रहे हो....
आजकल तुम्हारे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का आलम ये हो गया है
तुम्हारे लिए घर आना भी एक इमारत से दूसरी इमारत में जाने जैसा हो गया है.....
रात को बस सोने के लिए?
नही! स्लीपिंग मोड में जाने के लिए बस....
ताकि तुम्हारी एफिशिएंसी बनी रहे....
वाह! सी ई ओ साहब!!!
यही है तुम्हारी कार्यकुशलता???
जिसे सरकार ने पहचान कर तुम्हे पुरस्कार से नवाज़ा है....
सॉरी सी ई ओ साहब!!
तुम्हारे मैनेजमेंट कोर्स में सुकून का क्या काम? उसमे तो प्रोडक्टिविटी को ही सिखाया जाता है....
तुम्हारे उन महँगे मैनेजमेंट कोर्स में घर को बस होम लोन और टॉप अप लोन तक ही सीमित रखा है....
तुम क्या जानो इंसान दुनिया भर में सुकून खोजने के लिए ख़ाक छानता फिरता है?
उसे फिर भी सुकून नहीं मिलता है...
आख़िर में उसे खोजता हुआ जिस जगह पर आता है उसे घर कहते हैं..
जहाँ गुलदस्तों में पड़े सूखे फूलों की भी ख़ुशबू होती है ...
जहाँ, कोई भी रंग और कोई भी ढंग चलता है...
लेकिन सारे रंग ढंग से सजकर एक बड़ी ख़ूबसूरत तस्वीर बनाते है ...
सी ई ओ साहब!! घर सिर्फ एक इमारत भर नहीं है ...
घर तो एक भावना है, एक फ़ीलिंग है ...
जहाँ, एक दूसरे के दिल की धड़कन भी भाषा है ...
जहाँ, ऐसी सुनहरी यादों की रचना होती है कि उनकी गूंज कई पुश्तों तक पहुँचती हैं ...
सी ई ओ साहब, कभी उस दुनिया से बाहर निकलकर भी देख लिया करो
जहाँ रोबोट सी एफिशिएंसी तो नही होगी
लेकिन साथ में हँसने बोलने के लिए लोग होंगे
जो किसी बुरे से बुरे जोक पर भी हँसकर ताली देंगे
और रोने के लिए कभी जरूरत पड़ने पर कंधा देंगे........