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Pradeep Kumar Panda

Abstract

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Pradeep Kumar Panda

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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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आज जो पीछे मुड़ के देखा तो

कुछ यादें बुला रही थी

अब तक के सफर की

सारी बातें बता रही थी

कितनी मुश्किल राहें थीं हम

क्या, क्या कर गए

एक सुकून की तलाश में,

कहां, कहां से गुजर गए


कितने लोग मिले सफर में

कितने बिछड़ गए

जन्मों तक साथ निभाने वाले

जाने किधर गए

अलग ही ज़माना था, वो

अलग ही दौर था

ज़िन्दगी जीने का

मक़सद ही कुछ और था

बचपन की नादानियां थीं

ख्वाबों भरी जवानियां थीं

घर की जिम्मेदारियां, थीं

काम धंधे की परेशानियां थीं

हर उम्र के सपने अलग थे

खुशियों का दृष्टिकोण अलग था


गोल अलग था

मोल अलग था

आईने में खुद को देखकर

सोचता रहता हूँ

क्या खोया, क्या पाया

अक्सर तौलता रहता हूँ

कुछ चेहरे, कुछ बातें

कुछ भूली बिसरी यादें

ढूंढ रही हैं मुझे

क्या सही था, क्या गलत था

पूछ रही हैं मुझे

उम्र के साथ, साथ

सोच बदलती रहती है

चाहत बदलती रहती है

खोज बदलती रहती है


अब इस मुकाम पर

एक ठहराव आ गया है

मंज़िल का तो पता नहीं

पर पड़ाव आ गया है

बेचैन मन को राहत मिलने लगी है

समझौता कर लिया तो,

ज़िन्दगी मुकम्मल लगने लगी है

ऐ प्रभु तेरा शुक्रिया

तुझसे कोई शिकवा, गिला नहीं है

यहां सब थोड़े अधूरे से हैं

किसी को पूरा मिला नहीं है

बहुत सारी कट गई

अब थोड़ी सी बची है

किसी के होठों पे मुस्कुराऊँ

जाने के बाद भी याद आऊँ 

बस यही ज़िन्दगी है

बस यही ज़िन्दगी है



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