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Pradeep Kumar Panda

Abstract

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Pradeep Kumar Panda

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रिश्ते

रिश्ते

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सूखे हुए शजरों पे परिंदे नहीं रहते

जब पंख निकल आएं तो बच्चे नहीं रहते


हर बाग़ में, हर पेड़ पे सूरज का करम है

उगते हैं जो फल धूप में, कच्चे नहीं रहते


पहले मैं सभी रिश्ते निभा लेता था लेकिन

दिल टूटा हुआ है, यहाँ रिश्ते नहीं रहते


संसार में अपनी भी चमक चाँद सी होती

हम लोग अगर इल्म में पीछे नहीं रहते


जल जाते सभी भूख, ग़रीबी की तपिश से

दुनिया में अगर खेल तमाशे नहीं रहते


सच्चाई के रास्ते से अलग हो के जो चलता

प्रदीप तेरी राहों में कांटे नहीं रहते।


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