STORYMIRROR

Garima Sharma

Abstract

4  

Garima Sharma

Abstract

मुखोटा

मुखोटा

1 min
380

मेरे ह्रदय में आग का उबाल है

 नेत्रों में वेदना का ताल है

 मुस्कुराता हुआ चेहरा तो केवल

 बनावटी मुखोटे का कमाल है

 बस जीवन का यही हाल चाल है 


 श्रृंगार चेहरे की पीड़ा को ढकता है

 पर दर्द का घूंट तो गले में अटकता है

 इस अटके हुए घूंट से चेहरा लाल है

 मस्कुराता हुआ चेहरा तो बस मुखोटे का कमाल है


 मेरा शरीर महलों में पलता है

 पर मन अंदर से जलता है

आत्मा मन बहलाने वाली बेताल है

 दिखावटी चेहरा तो बस मुखोटे का कमाल है


 रिश्ते अपनी दास्तान गाते हैं

और अपने अपनों से उलझ जाते हैं

 इन नेत्रों में उलझनों का जाल है

चमकता हुआ चेहरा तो बस मुखोटे का कमाल है


परिस्थितियां समक्ष मेरे दिखती है

यह कलम अपनों के पक्ष में लिखती है

कि गम छुपाया हुआ चेहरा ही तेरी ढाल है 

बस देखती जा यह सब मुखोटे का ही कमाल है!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract