विश्व युद्ध
विश्व युद्ध
प्रचंड युद्ध की दहशत से
सब अस्त-व्यस्त और ध्वस्त हुआ खतरों से मानव रुके छिपे बच्चों का बचपन त्रस्त हुआ खतरा हर क्षण, खतरा हर पल ना जाने कहां से गिर जाए विस्फोट भयंकर गूंज करें यह देख कलेजा चिर जाए डरे ,सहमे ,हैरान, बेचारे संकट के भीतर पनाह लिए बम की वर्षा नें शाम- सुबह शहरों के शिखर तबाह किये।
विश्व- पटल की पृष्ठभूमि पर यह युद्ध भयानक त्रास बनाये राष्ट्र द्वंद, ये राष्ट्र द्वंद एक दूजे का ग्रास बनायह खुला गगन अब सुकून नहीं खतरे की गूंज से दहाड़ रहा कब, कहां, क्या मिट जाए कब कौन -सा आंचल फाड़ रहा यह चीख का शोर और रुदन घोर रक्षार्थ गुहार लगाता है त्राहिमाम् अब त्राहिमाम् से अंत का शंख अब चाहता है यह बमबारी का दृश्य भयानक कितना संहार करेगा अब एक क्षण और एक पल की जंग काघनघोर प्रहार रुकेगा कबघनघोर प्रहार रुकेगा कब।
