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Lakshman Jha

Abstract

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Lakshman Jha

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हृदय से जुड़ना

हृदय से जुड़ना

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कैसी विडम्बना है ?हम लोगों से तो जुड़ जाते हैं !

उम्र की सीमा नहीं फिर भी मित्र कहलाते हैं !!

यह तो फेसबुक ने जनसाधारण के लिए शब्द चुने हैं !

पर श्रेष्ठता ,समतुल्यता और कनिष्ठता को हम कभी नहीं भूले हैं !!

श्रेष्ठ जो भी हैं वो हमसे श्रेष्ठ सब दिन ही रहेंगे !

उनके आशीषों से ही हम सदा रणक्षेत्र में आगे बढ़ेंगे !!

आज जो हैं अनुज वो कल हमारे अग्रज बनेंगे !

उनके पदचिन्हों में चलके हम सदा आगे बढ़ेंगे !!

प्रौढ़ता में पुत्र भी पिता के दोस्त बनते हैं !

उम्र होने पर अपनी बातों को मिलके साझा करते हैं !!

शिक्षक भी अपने शिक्षार्थियों से खुलकर रहना चाहते हैं !

जीवन के हर दाव -पेंच और धनुर्धर बनाना चाहते हैं !!

डिजिटल दुनियाँ से हम जुड़ गए तो हमें जुडने देना चाहिए !

कोई शंका यदि मन में उभर जाए तो समाधान करना चाहिए !!

अब भला हम बात भी उनलोग से कैसे करें ?

संवाद भी हम करें तो उनलोग से कैसे करें ?

संपर्क नंबर हमको देना नहीं स्वीकार है !

दो शब्द भी हम लिखने को नहीं तैयार हैं !!

हमरे टाइम लाइन के द्वार पर दो आदमखोर सिंहों का बसेरा हैं !

कुछ हरकतें भी भूलके करना नहीं चारों तरफ प्रतिबंध का अंधेरा है !!

भूलके भी मैसेंजर में कुछ लिखना नहीं !

आप कुछ भी लिख दे हमारे फितरत में उसको पढ़ना नहीं !!

इस तरह हम दिल में कैसे सबके रह पाएंगे ?

वसुधेव कुटुंबकम का मंत्र किस तरह दोहराएंगे ?


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