हृदय से जुड़ना
हृदय से जुड़ना
कैसी विडम्बना है ?हम लोगों से तो जुड़ जाते हैं !
उम्र की सीमा नहीं फिर भी मित्र कहलाते हैं !!
यह तो फेसबुक ने जनसाधारण के लिए शब्द चुने हैं !
पर श्रेष्ठता ,समतुल्यता और कनिष्ठता को हम कभी नहीं भूले हैं !!
श्रेष्ठ जो भी हैं वो हमसे श्रेष्ठ सब दिन ही रहेंगे !
उनके आशीषों से ही हम सदा रणक्षेत्र में आगे बढ़ेंगे !!
आज जो हैं अनुज वो कल हमारे अग्रज बनेंगे !
उनके पदचिन्हों में चलके हम सदा आगे बढ़ेंगे !!
प्रौढ़ता में पुत्र भी पिता के दोस्त बनते हैं !
उम्र होने पर अपनी बातों को मिलके साझा करते हैं !!
शिक्षक भी अपने शिक्षार्थियों से खुलकर रहना चाहते हैं !
जीवन के हर दाव -पेंच और धनुर्धर बनाना चाहते हैं !!
डिजिटल दुनियाँ से हम जुड़ गए तो हमें जुडने देना चाहिए !
कोई शंका यदि मन में उभर जाए तो समाधान करना चाहिए !!
अब भला हम बात भी उनलोग से कैसे करें ?
संवाद भी हम करें तो उनलोग से कैसे करें ?
संपर्क नंबर हमको देना नहीं स्वीकार है !
दो शब्द भी हम लिखने को नहीं तैयार हैं !!
हमरे टाइम लाइन के द्वार पर दो आदमखोर सिंहों का बसेरा हैं !
कुछ हरकतें भी भूलके करना नहीं चारों तरफ प्रतिबंध का अंधेरा है !!
भूलके भी मैसेंजर में कुछ लिखना नहीं !
आप कुछ भी लिख दे हमारे फितरत में उसको पढ़ना नहीं !!
इस तरह हम दिल में कैसे सबके रह पाएंगे ?
वसुधेव कुटुंबकम का मंत्र किस तरह दोहराएंगे ?