मुखौटा
मुखौटा
पल पल दिल में तुम
हलचल मचा देते हो
कुछ सोचूँ या ना सोचूँ
फिर भी तुम, कुछ लिखवा देते हो।
कभी सुनना चाहती हूँ,
कभी गुनना चाहती हूँ
कभी कहना चाहती हूँ
कभी चुप रहना चाहती हूँ
जब चुप भी रहना चहूँ
तुम दिल में भावों का
तूफान मचा देते हो।
मैं चाहूँ या ना चाहूँ
फिर भी तुम कुछ लिखवा देते हो।
"यहाँ सिर्फ दिखावा है
पूरी दुनिया छलावा है
हर इक चेहरे पर
मुखौटा का पहनावा है
यहाँ झूठ शान से
सच पर मुस्काता है"
पर कर ले जितना जतन
तू जीत ना पाएगा
किसी का मन,
जब ना हो तेरे मन में
भाव करुणा और प्रेम के
तो फिर किस काम का
ये मानव जीवन?
जीवन सीमा पे फीकी पड़
ये माया की खन खन।
इन शब्दों की दौलत ही
मुझे सबसे अलग जताती है
मेरी खामोशी को भी
यूँ मुखर बनाती है
मैं चाहूँ या ना चाहूँ
कुछ लिखवा ही जाती है।
