प्रेम- रंग की होली
प्रेम- रंग की होली
आया त्यौहार होली का, पिछली यादें तरो-ताजा करने को।
रंगों भरी वों यादें हैं, मन होता हर्षित मचलने को।।
" प्रेम -रस" की भर पिचकारी, उतावली है सब को रंगने को।
अबीर ,गुलाल भी मचल रहा ,सब के गालों में सजने को।।
उम्र का कोई बंधन नहीं, सब हैं गले मिलते आपस में।
होलिका दहन यही सिखलाती, एक सूत्र में बँध जाने को।।
सब की होली बड़ी निराली,जो सबको देती है खुशहाली।
बच्चे -बूढ़े भी अपने धुन में ,उतावले रहते खेलने को।।
रंगो भरी यह होली, देती है प्रेरणा कुछ करने को।
" धर्म -रहस्य" है इसमें छिपा, जरूरत है इस को अपनाने को।।
" प्रेम- रंग "की आज है जरूरत, जो नहीं दिखती लोगों में।
असली रंग इसका है चढ़ता, जो देती खुशियाँ औरों को।।
भर दो "प्रेम- रंग" होली का, जिनकी दुनिया बेरंगी है।
सार्थक बनेगा तब यह त्यौहार, जो समझेगा इस होली को।।
