इल्तिजा
इल्तिजा
मुझे तुम किसी दिन वहां पर बुलाना
जहाँ कोई भी आता जाता न हो
मुझे मेरे होने का भी कुछ पता हो
ना तुम बेखबर हो, ना मुझसे खता हो
मुझे तुम किसी दिन वो सबकुछ बताना
जो कोई किसी को बताता ना हो
गिरे शोख़ शाखों से पत्ते जहाँ पर
कोई पैर उनपे जमाता ना हो
ना आँखें ही नम हों ना कोई कमी हो
कोई भी किसी को रुलाता ना हो
लहद से भी उठना है एक दिन तो आखिर
मुतय्यन है उसका भी एक दिन मुक़र्रर
लहद में भी हैं फिक्रें और एक शिकन भी
ना मुर्दा है दिल और ना ज़िंदा थकन भी
बसाना मेरा घर वहां साथ जाकर
लहद तक भी कोई बनता न हो
कोई भी किसी को सताता ना हो
समाना वहां जा के रूह में तुम मेरी
के जैसे कोई भी समाता ना हो
दिखाना मुझे जलवे फिर ऐसे उस दिन
के कोई किसी को दिखाता ना हो
सिखाना मुझे फिर मोहब्बत की धुन तुम
के कोई यहाँ गुनगुनाता ना हो
मुझे तुम किसी दिन वहां पर बुलाना
जहाँ कोई भी आता जाता ना हो

