हुश्न के नखरे
हुश्न के नखरे
रात के मद्धम बहते पहर में
चाँद की गवाही संग
छत पर टहलते
ईईशशश ये आँचल ढ़लका
सुनो तुमसे कुछ कह रहा है
सीने पर सर रख लो
हर धड़क पर बज रहा है एक नाम।
ये अंगों की
अठखेलियों की दावत पर
करीब आओ तो जानूँ तुम्हारी आशिकी की इंन्तेहाँ
अपने दामन की खुशबू बना लो मुझे
तुम्हारे दिल के सुने बाग में कोई फूल खिल जाए।
हाँ थोड़ा ओर करीब
तलब की मारी बेबस पेड़ से लिपटी लताओं की भाँति महसूस करूँ तुम्हें।
न..न..न यूँ न दूर जाओ यहाँ पल भर में मौसम बदल जाते हैं,
खुले गेसूओं से खेलने आ जाओ
कंगन से उलझो, या पायल से झुलसो
मतवाली अदाओं को कुछ-कुछ तो समझो।
जवाँ खूबसूरत हुश्न के नखरे हैं
इश्क के मारों उठाने का जो जिगर रखते हो
इस महफ़िल में खुलती हैं निगाहों की सुराही
जो समझो नैंनों की भाषा तो कर लो दिल पर राज,
वरना हुश्न की ठोकर पे सारा ज़माना है।

