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Arunima Bahadur

Action Inspirational

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Arunima Bahadur

Action Inspirational

हसरतें

हसरतें

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जीवन की गति जैसे जैसे यूं बढ़ती रही,

हसरतें नव पुष्प बन नित नित खिलती रही।


हर हसरतों का जैसे एक कुचक्र रच गया,

मनुज, हाय बेचारा, चक्रव्यूह में उलझ गया।


हर दिन रही यह दुविधा, क्या यही जीवन है,

दिन रात जो भागे, क्या यही मनुज मन है।


कितने महापुरुष लिख गए, मानव जीवन की असीमताये,

फिर मेरे जीवन में क्यों आयी, इतनी सारी विपदाएं।


तब जागा फिर मानव मन, खुद को खोजने को,

आ गयी प्रस्थान की बारी, हाथ खाली ही रहा।


कैसी हसरतें ये रही, जो कुछ न दे सकी,

न मिला कुछ भी तुझे, रेत सी मंजिल मिली।।



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