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हरेक पल

हरेक पल

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हरेक पल,हरेक दिन

समझा है बस तुम्हें ही

हरेक साँस,हरेक प्यास

पाया है बस तुम्हें ही

हरेक बात जो

तेरे-मेरे बीच घटी

हरेक रात जो

तेरे-मेरे बीच घटी

हरेक चाह,हरेक आह

माँगा है बस तुम्हें ही

कितनी ही बार

तेरे मतभेद

बन गए मनभेद से

और बनने लगे

अपनी गृहस्थी में

कई कई छेद से

वैसे लम्हों के आख़िर में

चाहा है बस तुम्हें ही

तुम जो केवल एक

जिस्म नहीं हो

तुमको सोचा भी नहीं

मैंने जिस्म की तरह

हरेक ख़्याल,हरेक मलाल

में सोचा है बस तुम्हें ही

जैसे मेरे जीवन में

आके बैठा है तू ता-जीस्त

वैसे ही चाहता हूँ खुद से

कर लूँ पैकर बस तुम्हें ही


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