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इक उम्मीद

इक उम्मीद

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इक भागते समय में 

ठहरा हुआ मैं

ठिठका हुआ सा 

सब देख रहा हूँ 

इक दौड़ती हुई दुनिया

ये अचंभित से नज़ारे 

रह रह कर क्या तो 

उतावला सा पुकारे 

इक पल में कई पल 

इक दिन में कई दिन

इक जन्म में कई जन्म 

जी रहा हूँ मै 

कुछ चाहतें अजीब से 

कुछ पाने की 

कुछ खोने की 

कुछ पाता हुआ सा 

खुद को खो रहा हूँ 

इक उम्मीद 

इक ज्वाला 

इक उम्र का रिसाला 

कुछ हर्फ़ को जी जी कर 

पी रहा हूँ मैं 

इक सब्ज़ बहारा

इक नक्श सूफियाना 

रह रह कर आँखों में 

करता है इशारे

इक आग की ज्वाला 

कर देती है ख़ाक

पल पल में मैं 

हो जाता हूँ राख 

उस राख से उठकर 

फिर फिर से खड़ा होऊँ

मैं नहीं चाहता कि अब 

मैं किसी से बड़ा होऊँ

डरता हूँ कि ये पुरस्कार 

बन जाए न कोई बोझ 

चल रहा हूँ जो छलछलाता 

मिट जाए न वो ओज 

बस इस ही तरह मैं 

ईश्वर को बो रहा हूँ 

अपने ही हाथों 

अपना मुकद्दर ढो रहा हूँ


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