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Rajeev Thepra

Abstract

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Rajeev Thepra

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स्त्री

स्त्री

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खड़ी खड़ी अचानक इक

दिन नदी हो जाती है स्त्री

बहते बहते इक दिन अचानक

पहाड़ हो जाती है स्त्री

इक सामान्य सी साँस लेते हुए अचानक

तूफ़ान हो जाती है स्त्री

सबको खुश्बू बाँटती हुई अचानक

एक दिन खार हो जाती है स्त्री

ये सब क्यूँ होता है मगर

क्या होना होता है स्त्री को

और क्या हो जाती है स्त्री

उत्तर हमारे ही भीतर छिपे हैं

जिनको ढूंढ़ने हमें गहराई में कतई नहीं जाना

जब नहीं रहता कोई पुरुष,पुरुष

तो नहीं रह पाती

कभी कभी कोई स्त्री ,स्त्री


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