हर साल तेरा खत मिलता रहे
हर साल तेरा खत मिलता रहे
एक खत जो मुझे आज भी याद है,
किसी ने मेरे जन्मदिन पर लिखा था,
वो क़र्ज़ मुझे आज भी याद है,
जो उसका मुझपे चढ़ा था।
कुछ शुतुरमुर्ग कहके बुलाती थी वो मुझे,
बड़ी टेढ़ी थी,
व्हाट्सप्प और मैसेज के ज़माने में,
कुछ खत लिखना पसंद करती थी।
चुलबुली और थोड़ी चालू सी थी,
दिल लुभाने में माहिर सी थी,
न जाने एक रात वो मिल गई,
इस बंजर दिल पे कुछ गुलाब सी थी।
खत नहीं अपना दिल उतारा था उसने,
जन्मदिन की शुभकामनाएं नहीं,
प्यार लिखा था उसने,
अभी तो सिर्फ आधा ही पढ़ा था,
और आधे मे ही अपना बनाया था उसने।
आखिर ये खत भी उसी की तरह था,
एक दम साफ,
अगर कभी गलती से दिल दुखाया हो,
तो दिल से करना माफ़।
एक खत जो तूने लिखा,
एक कविता मैंने लिखी,
हर साल तेरा खत मिलता रहे,
ये अरदास रब से मैंने करी।