हर रंग हुआ बदरंग
हर रंग हुआ बदरंग
हर रंग हुआ बदरंग धरा पर,
विपदा है ऐसी छाई सावन की घटा
हरियाली भीइस मन को बिल्कुल ना भाई
नहीं कजरी गूँजी गाँवों में ना लगे महावर पाँवों में
हर दिल में तड़प है अब बाकी हैं जख्म हरे हर घावों में
झूलों को तरसी हर डाली अब नीर बहाए हर भाई
हर रंग हुआ बदरंग धरा परविपदा है ऐसी छाई
हर मानव बेबस व्याकुल है इस दुःख का कोई छोर नहीं
फिर से दिखलाया कुदरत नेउस पर है किसी का जोर नहीं
कैसे उल्लासित तनमन होजब भूखे हों सब
बहन भाईहर रंग हुआ बदरंग धरा परविपदा है ऐसी छाई
सूनी सूनी सी बदली
है सूनी सूनी ये हवाएँ हैं
अंबर भी रोता हाल देखबेचैन हुई ये हवाएँ हैं
बदहाल लोग हैं त्रस्त बड़े बीते सावन की याद आई
हर रंग हुआ बदरंग धरा परविपदा है ऐसी छाई
हुई चमक है फीकी सूरज की चंदा भी अब बे नूर है
क्या होगा इस दुनिया का अबहल अभी बहुत ही दूर है
सर्दी खाँसी भी खास बनींजां लेती है कोरोना माईहर
रंग हुआ बदरंग धरा परविपदा है ऐसी छाई
हर घर है कारागार बनाहर घरवाला अब कैदी है
मानव की क्या औकात आज खुद कुदरत भी ये कहती है
नभमंडल समझो पिता तुल्य और समझो धरती माई है
हर रंग हुआ बदरंग धरा परविपदा है ऐसी छाई।