हर लम्हा उसके नाम
हर लम्हा उसके नाम
मेरे अंदाज से ज्यादा,
वह खूबसूरत निकली,
मगर क्या करूँ,
चाँद को निहारती,
वह सुहागन निकली !
आँचल में छुपा था,
मुखड़ा सुहाना,
मेरे आँखो का दर्पण,
मनभावन निकली !
नसल की असली,
फसल थी वह,
पंछियों में सुस्वर,
कोयल निकली !
लैला नहीं थी,
न तो राँझा की हीर,
वह तो झील में खिलता हुआ,
कमल निकली !
मानो माली के बगीचे की,
कच्ची कली वह,
चार बच्चों की,
माँ निकली !
फुरसत में बनायी गयी,
हूर थी तौबा,
मैं चाँद था उसका,
वह मेरी चाँदनी निकली !
मेरे जंग की रानी,
आँगन की खुशबू
वह मेरी जीवन संगिनी,
"चित्तचोर" निकली !

