बुरा न मानो दद्दू
बुरा न मानो दद्दू
दूजे के खेत में उगाके खाये
चीनी में डुबो के कद्दू
खुद के मकड जाल में फँसा है
हमारा पड़ोसी दद्दू।
सीमा पर बसे है जिसके
दहशतगर्द अड्डे
अंदर रस्ते में पड़े हैं
गरीबी के कितने ग़ड्डे।
बुरा न मानो आका
हम देते तुम्हें मशवरा
गल पाक करोगे अभी भी
चेहरा निखरेगा तुम्हारा।
जैसे हमारा भारत
जहाँ अमन की खुश्बू बिखरे
जहाँ बसंत बारह महीने
सृष्टि का रूप निखारे।
यदी पहल करोगे तुम तो
हम निभायेंगे दोस्ताना
अगर हाथ हो मिलाना
दिल साफ कर के आना।
तुम्हारा आतंक नहीं तो
बनायेगा तुम्हें ही निशाना
नहीं बचा सकोगे फिर
खुद का ही आशियाना।।