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Dharm Veer Raika

Classics

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Dharm Veer Raika

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हर अंग का अपना कर्म

हर अंग का अपना कर्म

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यह गौरा सा सुंदर चेहरा,

इसमें कुछ खुबी होगी मेरा,

इनको भी कभी होता होगा, गर्व

जब होता है मिस वर्ल्ड, सर्वे

हर अंग का अपना कर्म .....।


यह सांवला सा मुंह तेरा,

क्या प्रकट कर रहा है मेरा,

इनके भी कुछ होंगे, ख्वाब 

किसी के लिए इनके भी होंगे, जवाब 

हर अंग का अपना कर्म .....।


छोटी-छोटी सांवली मुंछे,

प्रकट करती अपनी अवस्था,

इनका भी कुछ होगा, फर्ज 

इनका भी पिछले जन्म का होगा, कर्ज़

हर अंग का अपना कर्म .....।


यह छोटी छोटी आंखें,

 दीखती है छोटी-छोटी सलाखें,

इनका भी कोई होगा, सपना

 क्योंकि कभी यह प्रकट करेगी, अपना

हर अंग का अपना कर्म .....।


यह कान भी कुछ सुनता होगा,

कुछ अच्छी बातों को भुनता होगा,

कितने सुंदर सर के बाल,

यह सोचते होंगे मेरे से सुंदर थोड़े होंगे गाल,

हर अंग का अपना कर्म .....।


इस दिमागी समतल ललाट में,

कितनी बड़ी होगी इनकी मेमोरी,

 इनके भी कितने आए मोरी,

 क्योंकि इनको भी याद रखने हैं अपने दिन, साॅरी

हर अंग का अपना कर्म .....।


इन पैरों को भी कितना चलना होगा,

दांत भी सोचते होंगे कितना दलना होगा,

जीभ को थोड़ा पता कितना बोलना होगा,

किसी ने सोचा होगा इस शरीर को कितनी बार तोलना होगा,

हर अंग का अपना कर्म .....।


इस शरीर की ऊंचाई को कितना बढ़ना होगा,

इन आंखों ने सोचा होगा कितना पढ़ना होगा,

इन हाथों से कितना होगा, काम

कौन करता भाव इस शरीर के कितने, दाम 

हर अंग का अपना कर्म .....।


इस सर पर कितना उठाना होगा, वज़न

थौडा़ तो इस समय ने सोचा होगा, सजन

इस पेट में कितना समायेगा, खाना

मेरे अनुसार किसी न सोचा होगा कितना कर्ज, लाना

हर अंग का अपना कर्म .....।


कितना सुन्दर बनाया होगा, अंग,

सर्दी गर्मी में कितना होना पड़ता है, तंग,

किसने बनाया होगा अपनी मर्जी से,

इनको सिलना बेहद मुश्किल है दर्जी से,

हर अंग का अपना कर्म .....।


हदय की कितनी होगी, धड़के 

आगे जिंदगी कि कितनी लम्बी, सड़कें 

कवि तो अंगों का फर्ज लिखता है,

देखते है अगला कितना सिखता है,

हर अंग का अपना कर्म .....।


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