होना चाहिए-ग़ज़ल
होना चाहिए-ग़ज़ल
अमीर या ग़रीब वो रहीम होना चाहिए
आदमी ज़मीर से शरीफ़ होना चाहिए
जेब खाली या भरी ज़ुबाँ मगर शालीन हो
हैसियत हो कुछ, अदब रईस होना चाहिए
जहान हो रक़ीब सारा मुझको हैं नहीं गिला
एक बस क़रीब का हबीब होना चाहिए
न हो भले तू जश्न में कभी भी शा-मिल मगर
जरूरी है के ग़म में तो शरीक़ होना चाहिए
ज़िन्दगी गुज़र रही है बेसलीका बस यहाँ
जीने का हुनर, कुछ तरतीब होना चाहिए
क़ाफ़िए में फर्क़ हो तो रहने दीजिए ‘अभि'
एक ही मगर तेरा रदीफ़ ‘होना चाहिए’