हो कौन
हो कौन
बरसों से सँजोए था जो घरौंदा
पल भर में ही उजाड़ दिया।
लेकर आधार धर्मों का
इंसानियत का कत्ले आम किया ।।
नहीं सुनी वों चीख़ की फ़रियादें
बेबसों को चुन- चुन कर मार दिया।
सत्ता की गंदी राजनैतिकों के लिए
देश का सर्वनाश किया ।।
कितने माँ के प्यारों को ज़िंदा जला कर
राख में उन्हें ख़ाक किया ।
आख़िर हो कौन ?
