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Zeba Parveen

Abstract Tragedy Fantasy

4.0  

Zeba Parveen

Abstract Tragedy Fantasy

तकलीफ़

तकलीफ़

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परेशान दिल मेरा, हैरान सी हो गयी

रोती बिलखती हूँ मगर, तैयार फ़िर हो गयी।


सपना देखा था एक अपना समझकर

सपनों में ही खो गयी,आँख खुली मेरी जब

जग देख मैं रो गयी,


रोती बिलखती हूँ मगर,तैयार फ़िर हो गयी।

चाहतें मेरी भी कुछ,मजबूरिया जब आ गयी

छोड़ सारी चाहतों को जिया दूसरों के ख़ातिर


आज सच्चाई दिखी, आँख नम सी हो गयी 

रोती बिलखती हूँ मगर, तैयार फ़िर हो गयी।


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