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ZEBA PARVEEN

Abstract

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ZEBA PARVEEN

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उलझी सी ज़िन्दगी

उलझी सी ज़िन्दगी

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मसरूफ़ सा जहाँ ये सारा

दिलकश सा नज़ारा लगता

हरपल इसका सूफियाना सा लगता

मुस्कुरा के जियो सबकुछ

कि बाक़ी अब कुछ न रहा

ये पलभर की ज़िन्दगी,ये पलभर का जहाँ

गम सब न ज़ाहिर किया,साथी सच्चा जब ये खुद हुआ

खुशियां यू रूठी की,वापस न आए

न मैं बुलातीं, जब वो भूल जाए

ख्वाहिशे कुछ ऐसी ,जो पूरी न लगती

कुछ पूरी ख्वाहिश ,अब भी अधूरी-सी लगती

आदतें कुछ ऐसी बनी की छोड़ी जाए न

पर अब यही आदतें ,कुछ बुरी सी लगतीं

पलभर की ज़िन्दगी में, यूँ मसरूफ़ से हो गए

कि ये ज़िन्दगी भी अनसुलझी-सी एक पहेली लगती।



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