ख़ौफ की बस्ती
ख़ौफ की बस्ती
मौसम के मिज़ाज बदलते
कई सारे नये याद बनते
इस शहर के जब ख्यालात बिगड़ते
तब हर मासूम से दिल सहमते
डर-डर के जीते लोग यहाँ
सच को झूठ और झूठ को सच में बदलते
लोग यहाँ, कीमत नहीं रहीं ईमानदारी की
हर तरफ गूँज अब बेईमानी की
वाह वाही होती चोर बेईमानों की
नहीं मोल नहीं, नेक वफ़ादारों की
सीधे सच्चो को मनाते हैं, दगाबाज़
झूठों को बनाते हैं, अपना सरताज़
हैं ख़ौफ की बस्ती ये हैं, मुल्क आज़ाद
पर फिर भी ख़ुद से हर एक गुलाम ।