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ZEBA PARVEEN

Abstract

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ZEBA PARVEEN

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ऐ ज़िन्दगी

ऐ ज़िन्दगी

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ऐ ज़िन्दगी तुझे रोज़ सोचती हूँ मैं

कभी तूफान- सी क्यों तू

तो कभी हैरान आपनें आप से 

उलझनों से उलझीं हुयी

सुलझना क्यों जानती नहीं

निराली सी ये दुनिया तेरी

अनजान इसमें लोग सारे

तेरे फ़साने- अफ़साने तूही जानें

मेरी मुश्किलों के फलसफे न तू जानें

हैरान हूँ थोड़ी परेशान भी हूँ

पर फिर भी आबाद हूँ मैं

दुख में हूँ थोड़ी तकलीफ में हूँ

हाँ मगर ख़ुश हूँ मैं

उलझनों से उलझीं हुयी

एक अनसुलझी पहेली हूँ मैं

ख़ामोशी कायम किए

एक चीख़ती आवाज़ हूँ मैं

फ़िर भी तू देख ऐ ज़िन्दगी मेरी मोहब्बत

रोज़ सुबह चेहरे पर मुस्कान लिए

आख़िर तुझें जीती चली जाती हूँ

मैं तुझसे जुदा नहीं हो पाती हूँ।

  


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