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Zeba Parveen

Others

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Zeba Parveen

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मेरी सखी

मेरी सखी

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मेरी सखी, कुछ ऐसी 

गुलाब की कली जैसी

प्यारी-प्यारी वो बहुत निराली 

कदम-कदम पर देती मेरा साथ

उसके हाथों में होता मेरा हाथ

रोज़ सुबह कॉलेज में करूँ मैं उसका इंतजार

जब होता उस पगली का दीदार

तब खिल से जाते हम दोस्त-यार

खुशनसीब हूँ कि वो सिर्फ मेरी हैं

नहीं छोड़ती कभी साथ मेरा, हर एक तकलीफ में

खड़ी रही मेरी ढाल की तरह, मेरे सारे सीक्रेट्स की तिजोरी वो हैं

मेरी हँसी का कारण वो, जिस दिन वो कॉलेज न आए

उस दिन सारा कॉलेज मुझे सूनसान जैसा लगें

सारा दिन सिर्फ हम बातें करे, उस बीच खूब हँसे

लैक्चर्स के बीच में भी हम मज़े करे।



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