हंसती है हम पर ये रातें
हंसती है हम पर ये रातें
हंसती है हम पर ये तन्हा रातें तुम्हारी
गुफ़्तगु को तरसती आँखों को बहती नदी कहते।
मैं घोल कर पी जाती हूँ यादों से भरी दर्द की चिंगारी
दिल जानता है तुम दूर बहुत दूर चले गए हो।
करवटों की सिलवटों से उठता है एक ज़र्द धुआँ
उस आगोश की खुशबू को ढूँढते
कटे थे जो लम्हें कभी तुम्हारी पनाह में इस रात को
गवाह रखते वही तानें देते रात जलाती है मुझको।
इश्क की धार तेज़ होगी इतनी न सोचा था चोट भी नहीं
और कट कर लहू-लूहान हुआ दिल तब जाना।
कहाँ ढूँढूं वो पल छिन वो रातें वो कसमे वो वादे वो खुशियाँ
सब समेटकर साथ ले गए तुम खुद को क्यूँ मेरे पास छोड़ गए तुम।
न जीने देते हो न मौत आती है तुम से तुम तक के सफ़र में
उम्र मेरी कटती है पास नहीं फिर भी साथ
हो यादों की बौछार में हर दम बहते।
