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हमदम

हमदम

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तुझसे मिली मैं जब, विरह वेदना सब दूर हुई

जानें कब की प्यास थी, आज लगा वो बुझ गई


साँसें तिलमिलाई-सी, धड़कन भी तेज थी

सिले थे लब मेरे, अंदर बड़ी शोर थी।


एक धुआँ-सा था, मन पंछी बन उड़ रह था

तुम थे और मैं थी, मानों दो जिस्म एक जान थी।


आहट कुछ सुन्न-सी, सुनने वाले बस हमतुम थे

सुन्दर अनुभूति थी और मंजिल भी एक थी।


एक अजीब-सी प्यास थी, तुम्हारे खड़ी मैं पास थी

लब सिले थे मगर, चाहतें दरमियां बरकरार थी।


बस जाऊँ तुझमें मैं, मुहब्बत की गहराई में,

तू भी समाए कुछ इस कदर, मैं, मैं न रहूँ, तुम,


तुम न रहो, जैसे कि खुशबू मिल जाए पवन में,

चारों तरफ खुशियाँ लहराए, चलो हमदम बनकर

जिंदगी के सफर में साथ कदम बढ़ाएँ।


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