Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Prerna Karn

Tragedy

3.4  

Prerna Karn

Tragedy

श्रम और श्रमिक

श्रम और श्रमिक

1 min
11.8K


मैं श्रमिक हूँ, 

रोज श्रम करता हूँ, 

हर क्षण परिश्रम कर करके,

परिवार का पोषण करता हूँ ।


मजदूरी मिलती कभी थोड़ी, 

कभी होती हैं जेबें खाली, 

कभी दो वक्त नसीब होता खाना, 

कभी खाली पेट पकड़ सो जाना ।


कभी भगवान को रूठकर कहना, 

आखिर हमें क्यों बनाया? 

जीवन इतना संघर्ष भरा,

दु:ख, कठिनाईयों से घिरा हुआ ।


प्रभु राम की छवि, 

आँखों में उभर जाती, 

मानों कह रहे हों हमसे !

मैं तो राजा था,

फिर भी वनवास किया, 

किस्मत तो तुम्हारी मुझसे अच्छी, 

'विरह' नहीं, सबका साथ मिला


ये व्यथा जब कानों में गूँजता,

मन में तब संतोष होता, 

न अपनाकर हिंसा, लूट, 

'परिश्रम' ही बनाया वजूद ।


न रहा आश्रित कभी किसी पर,

न अपनाया कभी आराम

हर क्षण अपनों की खातिर, 

किया समर्पित जीवन को 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy