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Prerna Karn

Abstract Tragedy Others

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Prerna Karn

Abstract Tragedy Others

जब रिश्तों का खून हुआ

जब रिश्तों का खून हुआ

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चुपचाप खड़ी थी मैं,

डरी-सी, सहमीं-सी,

हंसके देख रहीं थीं,

सबकी नजरें रोती मुझे,

एक घबराहट बेचैनी थी,

कहां जाऊं किसे सुनाऊं,

हमदर्द माना था जिसे,

वो भी खड़ा सामने,

ताड़-ताड़ करता रहा,

मेरे दूर जाने की,

हर संभव प्रयास करता रहा !

नज़रों से दूर हो गयी मैं,

जब रिश्तों का खून हुआ।



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