जब रिश्तों का खून हुआ
जब रिश्तों का खून हुआ
चुपचाप खड़ी थी मैं,
डरी-सी, सहमीं-सी,
हंसके देख रहीं थीं,
सबकी नजरें रोती मुझे,
एक घबराहट बेचैनी थी,
कहां जाऊं किसे सुनाऊं,
हमदर्द माना था जिसे,
वो भी खड़ा सामने,
ताड़-ताड़ करता रहा,
मेरे दूर जाने की,
हर संभव प्रयास करता रहा !
नज़रों से दूर हो गयी मैं,
जब रिश्तों का खून हुआ।
