हम तुम
हम तुम
हम तुम बने थे शायद
इक दूजे के लिए
तुम आती थी तो शायद
जल उठती थीं गुल बत्ती
मन के अंधेरे कमरे में
जैसे छू जाती थीं तरंगें
आत्मा को मेरी
जब बिन कहे जान जाते
थे हम तुम अल्फाजों को
मानो रिश्ता था कुछ खास
हमारा, हमारे मन का आत्मा का
इस संसारिक रिश्तों से ऊपर
कहीं ऊपर सोलमेट का रिश्ता
जो बना था बना है बना रहेगा
हमेशा हमेशा हमेशा।।

