हम तो दिल से हारे
हम तो दिल से हारे
महोब्बत है तुमसे
ये इजहार ना कर सके
चाहत है सिर्फ तुम्हारी
ये आह ना भर सके।
करनी थी तुमसे
प्यार की गुफ्तगू
आखों से आखें मिलें
इकरार हो रूबरू।
हमारे दबे होटों से
वह रह गयी बात
खामोश सारा दिन गया
चुपचाप थी सारी रात।
ऐ, दिल-ऐ- नादान बता मुझे
क्यों हमने ये सजा पायी
सुनहरी चांदनी फैली थी
फिर भी गमों की घटा आयी।
ऐसा क्यों लगा कि
जमाना जैसे रुक गया
फुलों का गुलदस्ता था
अपने आप ही सूख गया।
उम्मीद का दिया लेकर
कर रहे थे प्यार की तलाश
लेकिन इस बेरहम दुनिया में
बन गये एक ज़िंदा लाश।
इस इश्क की बाजी में
दाँव पे लग गये अपने सारे
जितना चाहते थे तुमसे
पर, हम तो दिल से हारे।
