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Lakshman Jha

Tragedy

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Lakshman Jha

Tragedy

हम तो चले परदेश

हम तो चले परदेश

1 min
96



कब तलक हम तेरे वादे का यूँ ही

इंतजार करते रहेंगे !

हम अपने देश लौट के आये थे सही

सोचा कोई काम हमें देंगे !!

कोरोना का जहर सारे शहरों के कोने

में फैल गया था !

सुनसान विरान देशों में विनाश  का

हाल हो गया था !!

लॉक डाउन के प्रहार से सबकी

कमर टूट रही थी !

उद्द्योग- धंधे कल -कारखाने सब

तालों में बंद पड़ी थी !!

ना काम था ना काज था फिर नौ

मन आनाज कौन देता ?

घर नहीं पैसे नहीं इस महामारी

में हमें साथ कौन देता ??

अफरा- तफरी में हमको निष्क्रिय

करके अकेला छोड़ दिया !

अपने देश में रहने वाले को सबको

प्रवासी घोषित कर दिया !!

भूखे बीमार लाचार हम अपने देश में

लोग हमको कहने लगे !

हमने जो बलिदान देकर देश बनाया

उसको भी सब भूल गये !!

दुःख मेंअपनों की ही याद आती है

घर को स्वर्ग समझते हैं !

रूखी -सुखी खाकर प्रेम से अपनों

के ही संग रहते हैं !!

दुःख सहसह के पैदल चलके अपने

देश में आ तो गए !

पर कोई ना काम मिला इस नगरी में

हमको सब यूँही भूल गए !!

फिर हम लौट कर जा रहे वहीँ पर

जहाँ फिर उम्मीदें जगीं !

हमें कामों की ललक है और वहीँ

भविष्य की किरणें जगीं !!



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