हम तो चले परदेश
हम तो चले परदेश
कब तलक हम तेरे वादे का यूँ ही
इंतजार करते रहेंगे !
हम अपने देश लौट के आये थे सही
सोचा कोई काम हमें देंगे !!
कोरोना का जहर सारे शहरों के कोने
में फैल गया था !
सुनसान विरान देशों में विनाश का
हाल हो गया था !!
लॉक डाउन के प्रहार से सबकी
कमर टूट रही थी !
उद्द्योग- धंधे कल -कारखाने सब
तालों में बंद पड़ी थी !!
ना काम था ना काज था फिर नौ
मन आनाज कौन देता ?
घर नहीं पैसे नहीं इस महामारी
में हमें साथ कौन देता ??
अफरा- तफरी में हमको निष्क्रिय
करके अकेला छोड़ दिया !
अपने देश में रहने वाले को सबको
प्रवासी घोषित कर दिया !!
भूखे बीमार लाचार हम अपने देश में
लोग हमको कहने लगे !
हमने जो बलिदान देकर देश बनाया
उसको भी सब भूल गये !!
दुःख मेंअपनों की ही याद आती है
घर को स्वर्ग समझते हैं !
रूखी -सुखी खाकर प्रेम से अपनों
के ही संग रहते हैं !!
दुःख सहसह के पैदल चलके अपने
देश में आ तो गए !
पर कोई ना काम मिला इस नगरी में
हमको सब यूँही भूल गए !!
फिर हम लौट कर जा रहे वहीँ पर
जहाँ फिर उम्मीदें जगीं !
हमें कामों की ललक है और वहीँ
भविष्य की किरणें जगीं !!