हम ही न थे
हम ही न थे
काबिल-ए-दोस्ती
हम ही न थे
गुनाहगार तुम्हें
बताएं भी तो कैसे
आरज़ू-ए-वफ़ा
हम ही न थे
तलबगार तुम्हें
बताएं भी तो कैसे
तमन्ना-ए-दिल
हम ही न थे
हकदार तुम्हें
बताएं भी तो कैसे
मुहब्बत-ए-वफ़ा
हम ही न थे
झूठा प्यार तुम्हें
बताएं भी तो कैसे।