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हीरे की कीमत

हीरे की कीमत

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एक अनमोल हीरे को वो भी नहीं पहचान सके,

वो अजनबी थे जो मेरी कीमत ना जान सके।


सौंप दिया हाथों में जिसको कुछ भी ज्ञात नहीं,

हीरे को भी खुद की कीमत का अंदाज नहीं।

गया जिसके हाथों में वो थोड़ा सा गोरा था,

मिट्टी लगी थी हाथों में और मेैं बहुत कोरा था।

चंद रत्नों में बिक गया जब वो सौदा मान चुके,

वो अजनबी थे जो मेरी कीमत ना जान सके।


कुछ पहर यूँ ही बीते मेरे उनके हाथों में,

पड़ा रहा मै भी कुछ दफ्तर और दुकानों में।

शत प्रतिशत मोल लगाकर वहां से मुझे भेज दिया,

एक महिला के हाथों में लाकर मुझको बेच दिया।

जेवर में जड़ गया जो सब अमीर ना पा सके,

वो अजनबी थे जो मेरी कीमत ना जान सके।


हजारों में फिर मोल लगाकर वहां से मुझे भगा दिया,

एक देवी के मुकुट में मुझे सुंदरता से लगा दिया।

तारीफ होती थी मेरी जब भी लगता मेला था,

चोर चुराकर ले गया जब मैं रात में अकेला था।

बेचा यूँ जब तक लाखों की कीमत पा न सके,

वो अजनबी थे जो मेरी कीमत ना जान सके।


एक तूफान आया और मैं मिट्टी में मिल गया,

बारिश के मौसम में फिर थोड़ा सा धुल गया।

चमक गया सड़कों पर तो नज़र पड़ी जौहरी की,

वृद्ध जैसी छवि और उम्र कोई अघोड़ी की।

ले जाकर कुटियाँ में अपनी मुझे तराश दिया,

आँखें चौंधियाई सबकी मैंने ऐसा प्रकाश किया।


अब अमीरो ने मेरी सुंदरता की बोली लगाई,

अंत में जौहरी ने अनमोल मेरी कीमत बताई।

मेरी एक झलक से वो जौहरी मालामाल हुआ,

अनमोल हीरा बनकर मैं भी खूब निहाल हुआ।


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