हद
हद
रहमत हो ख़ुदा की ना जाने कैसे
दो दिलों की कड़ी जुड़ जाती है,
जब मोहब्बत किसी से होती है तो
हद कहाँ नज़र आती है।
मिलाना हो किसी को तो
बिना मौसम बारिश भी हो जाती है,
बेरंग ज़िन्दगी भी फूलों सी
रंगीन नज़र आती है।
दिल और दिमाग में बस
उसी की तस्वीर छप जाती है
ये वो ख़ुशी है जो छुपाने से भी
कहाँ छुप पाती है।
जब मोहब्बत किसी से होती है तो
हद कहाँ नज़र आती है l
मोहब्बत शुरू होते ही ज़माने भर के
इम्तहानों की झड़ी लग जाती है,
मानों जैसे सुनहरी सुबह में
काली बदली छा जाती है।
इम्तहान-ए-मोहब्बत में
जान भी चली जाती है,
पर हौसलों की कश्ती
कहाँ रुक पाती है।
जब मोहब्बत किसी से होती है तो
हद कहा नज़र आती है।
उसकी यादों के सहारे ज़िन्दगी
कितनी हसीन बन जाती है,
जानते हैं सब ये वो उम्मीद है जो
आख़िर टूट ही जाती है।
इतिहास गवाह है सच्ची मोहब्बत
कहाँ किसी को मिल पाती है,
हाँ, बस ये उम्र है जो
उसे पाने की उम्मीद में कट जाती है।
जब मोहब्बत किसी से होती है तो
हद कहाँ नज़र आती है।