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Disha Gaur

Tragedy

5.0  

Disha Gaur

Tragedy

हैवान बनता इंसान

हैवान बनता इंसान

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आदमी के सिर पर

कैसा जुनून सवार है,

आदमी ही आदमी से

कर रहा तकरार है।


किस जगह बताइये

अल्लाह नहीं ईश्वर नहीं,

मंदिर मस्ज़िद में फिर

ये कैसी खींची दीवार है।


जंगल में वृक्ष भी तो रहते

हैं मिलकर प्यार से,

आम की गर्दन में भी

कोमल लताओं का हार है।

आज का मनुष्य,

इंसान बनना था जिसे,

हैवान बनकर वो कर रहा प्रहार है।


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