अपनो का मौन
अपनो का मौन
दबी आवाज़ में कहा था कुछ मैंने।
वो न सुन सके, उन्हें शोर पसंद है।
मैं भी न कह सकी, यूँ की कहने को बहुत था।
मैं आत्मसम्मान के चलते चुप हो जाती हूँ।
नहीं करनी है नुमाइश अपने दर्द की मुझे।
मैं हर पल अपने ज़ख्म अपनो से छिपती हूँ।
क्योंकि कहने को तो अपने हैं वो पर
अक्सर उन्हें भीड़ में दृष्टा बने हुए पाती हूँ।