है पुकार रही धरा !!
है पुकार रही धरा !!
है पुकार रही धरा
पुकार रहा है आसमां
के पँछियों को बेखौफ है उडना
पूछ रही ये के क्यों लड रहे हो तुम ?
किसकी है ये जमीं ? क्या है राम की ?
उसने की थी क्या लडाई जमीं के लिए
कभी अल्लाह का तो तू खौफ रख
दी उसने भी नहीं इजाजत
किसी मासुम के कत्ल की कभी
फिर कैसी ये इबादत है जिहाद के नाम पर ….
बुध्द ने दिया संदेश
शांती का इस विश्व को फिर बुध्द की इस धरा पर
है अशांती का वास्तव्य क्यों
रोक लों के मंजर और ना बिगड जाऐ
कोहरा और घना , गहरा ना हो जाये
क्यों अंधेरो से ही है प्यार हो रहा
बांटना बस प्यार क्यों , तुम भूल गये भला
बस अच्छा ,अच्छाई कुछ दिल खोल के बांट लो
किरने आशा के नये सुर्य की
बिखेरदो फिजाओ में तुम
क्या पता इक कोशिश तुम्हारी
रोशन करदे अंधेरे दिलों के
बस तुम इक लौं तो प्यार की जला दो ,
लौं तो प्यार की जला दो ……