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shaily Tripathi

Tragedy

4.5  

shaily Tripathi

Tragedy

फोन बहुत कम बजता है (Day14)

फोन बहुत कम बजता है (Day14)

1 min
391


तीस बरस पहले,आँगन में,बच्चों की, किलकारी थी 

छट्ठी, बरही, सालगिरह औ, मुन्डन की तैय्यारी थी 

धूम मची रहती थी घर में, पिक्चर,पिकनिक होती थी

सास-ससुर, नन्दों-देवर की, आवा-जाहि, रहती थी

फोन बजा करता था दिनभर, गेट की घंटी बजती थी


दिन भर दौड़ा करती थी, सबके कामों को करती थी, 

दवा, डॉक्टर, ट्यूशन, कोचिंग, सबकी झन्झट रहती थी

चैन न मिलता था दिन में , रातों की नींद अधूरी थी 

बच्चे जल्दी पढ़-लिख जाएँ, मन में कैसी चाहत थी 

तब मैं फ़ुर्सत से सोऊँगी, भोले मन में राहत थी 


बच्चे दूर गए,जब पढ़ने, घर की याद,सताती थी

फ़ोन की घंटी बजती थी तब,घंटों...बातें होती थीं

छुट्टी में घर आते थे, उनकी फर्माइश होती थीं 

तरह-तरह के व्यंजन बनते, घर में रौनक़ रहती थी

मोबाइल बजता था घर में, गेट की घंटी बजती थी,


बच्चे बड़े हुए पढ़-लिख के आज बड़े अधिकारी हैं

दूर ले गई रोज़ी-रोटी, वह सब अब, 'घर-बारी' हैं

सबकी अपनी दुनियाँ है, बीवी, बच्चे हैं, साली है

फोन नहीं करते अब घर पर, आने में दुश्वारी है

इसीलिए अब फोन बजे, ना गेट की घंटी बजती है। 


मिली बुढ़ापे में मुझको, जो फुर्सत मैंने चाही थी

जिम्मेदारी ख़तम हुईं अब काम नहीं कुछ बाकी है

शाम-दोपहर बैठूंँ, लेटूंँ कोई ना मजबूरी है... 

चाहा था, जो पाया, फिर भी, मन क्यों आज पूछता है? 

"गेट की घण्टी कम बजती है, फ़ोन, बहुत कम बजता है"



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